इमाम हुसैन (अ.स) — इंसानियत के लिए हिदायत का चिराग़
## **इमाम हुसैन (अ.स) — इंसानियत के लिए हिदायत का चिराग़** इस्लाम के इतिहास में अगर किसी शख़्सियत का नाम सच्चाई, इंसाफ, बहादुरी और इंसानियत की मिसाल के तौर पर सबसे ऊपर आता है, तो वह नाम है **इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम)** का। उनकी शहादत और करबला की घटना ने पूरी दुनिया को ये सिखाया कि ज़ुल्म और अत्याचार के सामने कभी झुका नहीं जाता। हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) न सिर्फ मुसलमानों के लिए, बल्कि हर मज़हब, हर क़ौम और हर इंसान के लिए **हिदायत का चिराग़** हैं। उनकी ज़िन्दगी और कुर्बानी पूरी इंसानियत के लिए एक रहनुमा और मार्गदर्शक है। ### करबला — ज़ुल्म के खिलाफ हक़ की जंग 61 हिजरी में जब यज़ीद ने इस्लाम की ख़िलाफ़त पर कब्ज़ा कर लिया और अन्याय तथा अत्याचार को बढ़ावा दिया, तो उसने इमाम हुसैन (अ.स) से अपनी बैअत (आज्ञापालन) की माँग की। इमाम हुसैन (अ.स) जानते थे कि अगर वे यज़ीद की बैअत कर लेंगे तो इससे इस्लाम के असली उसूल और इंसानियत की बुनियादें हिल जाएंगी। उन्होंने साफ़ लफ़्ज़ों में कहा — **"मेरे जैसे शख़्स, यज़ीद जैसे ज़ालिम की बैअत नहीं कर सकता।"** इसी इनकार ने करबला के मैदान को जन्म दिया। 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन (अ.स) ने अपने 72 साथियों के साथ जुल्म की लाखों फौज का डटकर मुक़ाबला किया। तीन दिन की भूख-प्यास, मासूम बच्चों की प्यास, और अपनों की शहादत के बावजूद वे हक़ के रास्ते से नहीं हटे। आख़िरकार खुद भी शहीद होकर उन्होंने इस्लाम और इंसानियत को नया जीवन दिया। ### **"हुसैन हिदायत का चिराग़ हैं"** हज़रत इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत केवल एक धर्म या समुदाय के लिए नहीं थी। उनका पैग़ाम सारी इंसानियत के लिए था। उन्होंने करबला में ये साबित कर दिया कि जब ज़ुल्म हावी हो, तो इंसानियत और हक़ को बचाने के लिए जान भी क़ुर्बान करनी पड़े, तो पीछे नहीं हटना चाहिए। इमाम हुसैन (अ.स) ने यह दिखा दिया कि इमान, इंसाफ, बहादुरी और नेकी की राह कभी भी आसान नहीं होती, लेकिन इसी रास्ते पर चलना इंसान को असल इंसान बनाता है। उनकी शहादत एक **रौशनी का चिराग़** है, जो हर ज़माने, हर दौर और हर दिल को हिदायत देता है। उनकी मिसाल यह सिखाती है कि भले ही ज़ालिम कितना ही ताक़तवर क्यों न हो, हक़ और सच्चाई की जीत ज़रूर होती है। आज भी जब इंसानियत किसी भी रूप में ज़ुल्म और अन्याय का सामना करती है, तो करबला की मिसाल एक रौशनी बनकर रास्ता दिखाती है। ### इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल इमाम हुसैन (अ.स) ने करबला में ये भी सिखाया कि मज़हब, जात-पात, अमीरी-गरीबी से ऊपर उठकर इंसानियत का साथ देना चाहिए। उनके लश्कर में हर मज़हब और हर तबक़े के लोग थे — मुसलमान, ईसाई, ग़ुलाम, बुज़ुर्ग और बच्चे। उनकी शहादत ने बता दिया कि इंसानियत की राह में कोई छोटा-बड़ा नहीं, सब बराबर हैं। अगर इंसाफ और हक़ के लिए जान की क़ुर्बानी देनी पड़े तो वह भी बख़ुशी देनी चाहिए। ### आज के दौर में हुसैनी पैग़ाम आज जब समाज में अन्याय, नफरत, भेदभाव और बर्बरता बढ़ रही है, तो करबला का पैग़ाम और इमाम हुसैन (अ.स) की हिदायत और भी ज़्यादा अहम हो गई है। उनकी शहादत हमें सिखाती है कि बुराई के सामने चुप रहना भी गुनाह है। हर इंसान को चाहिए कि वह अपने दिल में हुसैनी रूह ज़िंदा रखे और जब भी ज़ुल्म दिखे, उसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करे। अगर हर इंसान **हुसैन (अ.स)** को अपना आदर्श बना ले, तो दुनिया से नफ़रत, ज़ुल्म और भेदभाव मिट सकता है। --- ## **नतीजा:** **हज़रत इमाम हुसैन (अ.स)** वाकई में **हिदायत का चिराग़** हैं। उनकी शहादत ने पूरी इंसानियत को सिखाया कि सच्चाई के रास्ते पर चलना ही असली इबादत है और ज़ुल्म के खिलाफ डट जाना ही इंसानियत की सबसे बड़ी पहचान। **"हुसैन हर दिल का चिराग़ हैं, हर दौर की हिदायत हैं और हर ज़माने की ज़रूरत हैं।"**
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6/29/20251 min read


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