अरबईन

अरबा’ईन, कर्बला और इमाम हुसैन (अ.स) अरबा’ईन, जिसका अर्थ है ‘चालीसवाँ दिन’, इस्लामी इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना की याद में मनाया जाता है। यह दिन इमाम हुसैन (अ.स) और उनके साथियों की कर्बला में हुई शहादत के 40 दिन बाद आता है। इमाम हुसैन (अ.स), पैग़ंबर मोहम्मद (स.अ.व) के नवासे थे, जिन्होंने अत्याचार और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ अपनी जान और परिवार की कुर्बानी दी। अरबा’ईन का महत्व केवल शोक में नहीं है, बल्कि यह एक संकल्प है—कि अन्याय के सामने खामोश नहीं रहा जाएगा। हर साल, दुनिया भर से करोड़ों लोग, चाहे वे किसी भी धर्म या पंथ के हों, इराक के शहर कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की ओर पैदल यात्रा करते हैं। यह पैदल यात्रा, जिसे “अरबा’ईन वॉक” कहा जाता है, लगभग 80 किलोमीटर तक होती है। लोग रास्ते में मुफ्त पानी, खाना, और आराम की जगहें उपलब्ध कराते हैं। अरबा’ईन का संदेश है—साहस, एकता और इंसानियत। इमाम हुसैन (अ.स) ने दिखाया कि सच्चाई और न्याय की राह में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, डटना ही असली जीत है। आज के समय में, जब दुनिया में कई जगह अन्याय और भ्रष्टाचार फैला हुआ है, अरबा’ईन हमें यह याद दिलाता है कि हमें सत्य का साथ देना चाहिए और इंसाफ़ के लिए आवाज़ उठानी चाहिए। अरबा’ईन, कर्बला और इमाम हुसैन (अ.स) की कहानी सिर्फ़ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है। यह हमें यह सिखाती है कि मूल्यों और नैतिकता के लिए दी गई कुर्बानी कभी व्यर्थ नहीं जाती। कर्बला की मिट्टी से निकला यह संदेश आज भी गूंजता है— "हर दिन आशूरा है, हर ज़मीन कर्बला है।"

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8/13/20251 min read