अली की तरह जियो, हुसैन की तरह मरो

करबला और इमाम हुसैन (अ.स) का महत्व ! अली की तरह जियो, हुसैन की तरह मरो ! इस्लाम के इतिहास में करबला की घटना केवल एक जंग नहीं, बल्कि इंसानियत, हक़, इंसाफ और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ डटकर खड़े होने का सबसे बड़ा सबक है। 61 हिजरी में इराक़ के करबला मैदान में जो हुआ, वह आज भी दुनिया के हर ज़मीर वाले इंसान को जुल्म के खिलाफ खड़े होने और सच्चाई के लिए जान तक लुटा देने का पैग़ाम देता है। इमाम हुसैन (अ.स) पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के छोटे नवासे थे। उनका जीवन सत्य, ईमानदारी और इंसाफ की जीती-जागती मिसाल था। उनके पिता हज़रत अली (अ.स) इस्लाम के पहले इमाम और नायाब बहादुर थे, जिन्होंने हमेशा ज़ालिमों के सामने सिर नहीं झुकाया। इसी तर्ज़ पर इमाम हुसैन (अ.स) ने भी करबला की ज़मीन पर अपने 72 साथियों के साथ जुल्म और फरेब के खिलाफ आवाज़ उठाई। ! करबला की अहमियत ! करबला की लड़ाई इस्लाम की राजनीतिक सत्ता के लिए नहीं थी। यह जंग थी इंसानियत, नैतिकता और उसूलों को बचाने की। यज़ीद इस्लामी शासन को एक तानाशाही बना रहा था और चाहता था कि इमाम हुसैन (अ.स) उसकी बैअत कर लें। लेकिन इमाम हुसैन (अ.स) ने दो टूक कहा, **"मेरे जैसा कोई यज़ीद जैसे के हाथ पर बैअत नहीं कर सकता।"** इस एक फैसले ने इतिहास की धारा को बदल दिया। करबला की तपती रेत पर तीन दिन की प्यास और अपने मासूम बच्चों के साथ क़ुर्बानी देकर इमाम हुसैन (अ.स) ने बता दिया कि हक़ और इंसाफ की राह में जान की बाज़ी भी कोई बड़ी चीज़ नहीं। ### इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत का पैग़ाम इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए है। करबला ने हमें ये सिखाया कि अगर ज़ुल्म को देखकर चुप रह लिया जाए, तो वो दिन दूर नहीं जब इंसाफ और मानवता दम तोड़ देगी। इमाम हुसैन (अ.स) ने करबला में जो मिसाल पेश की, वो हर धर्म, जाति और मज़हब के लिए समान है। उनकी कुर्बानी इस बात का पैग़ाम है कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल क्यों न हो जाएँ, सच्चाई और हक़ की लड़ाई जारी रहनी चाहिए। ### **Live Like Ali, Die Like Husain** इस मशहूर जुमले का मतलब है कि इंसान को ज़िन्दगी में हज़रत अली (अ.स) की तरह जीना चाहिए — यानी ईमानदार, इंसाफपसंद, निडर, विद्वान और समाज के लिए रहमत बनकर। हज़रत अली (अ.स) का जीवन न्याय, बहादुरी और इंसानियत की सेवा के लिए समर्पित था। और जब ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई का वक़्त आए, तो हुसैन (अ.स) की तरह डट जाना चाहिए। इमाम हुसैन (अ.स) की शहादत ने दुनिया को सिखा दिया कि कभी भी अन्याय के आगे झुकना नहीं चाहिए। चाहे रास्ता कठिन हो या जान का खतरा, इंसान को अपने उसूलों और इंसानियत की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगाने से भी परहेज़ नहीं करना चाहिए। ### करबला का आज के ज़माने में महत्व आज जब दुनिया में ज़ुल्म, अन्याय, भेदभाव और मानवाधिकार हनन की घटनाएँ बढ़ रही हैं, तो करबला का पैग़ाम और भी ज़्यादा ज़रूरी हो गया है। इमाम हुसैन (अ.स) ने बिना किसी लालच के सच्चाई और हक़ के लिए शहादत दी। अगर हर इंसान अपने भीतर अली (अ.स) की तरह ईमानदारी और हुसैन (अ.स) की तरह हिम्मत पैदा कर ले, तो दुनिया से ज़ुल्म और अन्याय का नामो-निशान मिट सकता है। करबला हमें सिखाता है कि जब ज़ालिम बढ़ जाएँ, तो चुप रहना भी गुनाह है। इमाम हुसैन (अ.स) की तरह आवाज़ उठाना ही इंसानियत की सबसे बड़ी पहचान है। --- **नतीजा:** **"अली की तरह जियो"** यानी ईमान, इंसाफ और इबादत से अपनी ज़िन्दगी को रोशन करो। **"हुसैन की तरह मरो"** यानी सच्चाई और हक़ के लिए जान भी जाए तो अफसोस नहीं, बल्कि फख्र हो। यही करबला और इमाम हुसैन (अ.स) की असली सीख है — जो हर युग, हर मज़हब और हर इंसान के लिए अमर है। **सच्चाई की राह पर चलना ही ज़िन्दगी का असली मक़सद है।** ---

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6/28/20251 min read

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