करबला — सच्चाई और इंसाफ़ की मिसाल
**करबला : इंसानियत और अन्य धर्मों की नज़र में** करबला केवल इस्लामिक इतिहास की एक घटना नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता के लिए इंसाफ़, सच्चाई और ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की मिसाल है। 61 हिजरी में इराक़ के करबला नामक स्थान पर घटित यह घटना आज भी दुनिया के हर इंसान को यह पैग़ाम देती है कि जब अन्याय हावी हो जाए, तो चुप रहना भी गुनाह है। इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) ने अपनी जान, अपने परिवार और 72 साथियों की कुर्बानी देकर इंसानियत की रौशनी को हर दौर के लिए ज़िंदा रखा। ### करबला — सच्चाई और इंसाफ़ की मिसाल करबला की जंग किसी राजनैतिक सत्ता के लिए नहीं थी। यह एक जंग थी उसूल, इंसाफ़, और हक़ की। जब यज़ीद ने इस्लाम के नाम पर तानाशाही और अन्याय को बढ़ावा देना शुरू किया, तो इमाम हुसैन (अ.स) ने उसका विरोध किया। उन्होंने कहा — **"मेरे जैसे शख़्स, यज़ीद जैसे ज़ालिम की बैअत नहीं कर सकता।"** इमाम हुसैन (अ.स) का यह कदम केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए प्रेरणा है। करबला हमें सिखाता है कि जब ज़ालिम ताक़तवर हो जाए और समाज चुप बैठा रहे, तब भी हक़ के लिए खड़ा होना चाहिए। ### करबला और इंसानियत इमाम हुसैन (अ.स) ने करबला में केवल मुसलमानों के हक़ के लिए नहीं, बल्कि पूरे इंसानी समाज की भलाई के लिए अपनी जान दी। उनका पैग़ाम था कि किसी मज़हब, जाति, या वर्ग का व्यक्ति अगर ज़ुल्म का शिकार हो, तो उसके लिए आवाज़ उठाना हर इंसान का फर्ज़ है। करबला की घटना यह भी बताती है कि असली इंसानियत क्या होती है। करबला में इमाम हुसैन (अ.स) के लश्कर में हबीब इब्ने मज़ाहिर, ज़ुहैर इब्ने क़ैन, मुस्लिम बिन औसजा जैसे वफ़ादार साथी थे, तो वही ग़ुलाम, बुज़ुर्ग, और बच्चे भी शामिल थे। सभी ने हक़ और इंसाफ़ के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। ### अन्य धर्मों की नज़र में करबला करबला की घटना को केवल इस्लामी दायरे में सीमित नहीं किया गया। कई गैर-मुस्लिम विद्वानों, लेखकों और धार्मिक आचार्यों ने भी इमाम हुसैन (अ.स) और करबला की घटना को इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल माना है। **महात्मा गांधी** ने कहा था — **"मैंने इमाम हुसैन (अ.स) से सीखा कि किस तरह एक अत्याचारी शासक के खिलाफ़, बिना डर के डटकर खड़ा हुआ जाता है। अगर हम हुसैनी रास्ते पर चलें, तो भारत को भी आज़ादी मिल सकती है।"** इसी तरह ईसाई लेखक **एंटोनियो बार्न्स** ने लिखा — **"करबला की घटना हमें यह सिखाती है कि ज़ालिम चाहे कितना भी ताक़तवर हो, सच की ताकत उससे बड़ी होती है।"** हिंदू धर्म के कई विद्वानों ने भी इमाम हुसैन (अ.स) की कुर्बानी को धर्म और जाति से ऊपर उठकर मानवता की मिसाल बताया है। करबला आज भी हर मज़हब के उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाना चाहते हैं। ### करबला का आज के समाज में महत्व आज का समाज भी करबला के पैग़ाम की जितनी ज़रूरत अब है, शायद पहले कभी न थी। ज़ुल्म, अन्याय, भेदभाव, सांप्रदायिकता और मानवाधिकार हनन जैसी घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। ऐसे में करबला की घटना हमें यह सिखाती है कि इंसान को कभी भी बुराई के सामने झुकना नहीं चाहिए, चाहे हालात कितने भी कठिन हों। इमाम हुसैन (अ.स) ने जिस हिम्मत और हक़ के लिए शहादत दी, वह हर दौर के इंसान के लिए एक सबक है। करबला बताता है कि सच्चाई की ताक़त हमेशा जालिमों से बड़ी होती है। ### निष्कर्ष करबला की घटना सिर्फ इस्लाम की तारीख़ नहीं, बल्कि पूरी मानवता का गर्व है। इमाम हुसैन (अ.स) ने अपने अमल से यह साबित कर दिया कि असली इंसानियत मज़हब, जाति या वंश की मोहताज नहीं होती। उनके बताए रास्ते पर चलकर इंसान चाहे किसी भी धर्म या समाज से हो, वह ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठा सकता है। **करबला का पैग़ाम यही है — इंसानियत सबसे बड़ा मज़हब है, और हुसैनी रास्ता सच्चाई की सबसे रौशन मिसाल है।** **"करबला मज़हब की दीवारों से ऊपर उठकर इंसानियत का पैग़ाम है, जहाँ इमाम हुसैन (अ.स) ने बता दिया कि हक़ और इंसाफ़ के लिए जान देना धर्म नहीं, इंसान होने की पहचान है।"**
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6/30/20251 min read


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